पोपले मुँह से
बेसुरा गीत गाती है बसौली दादी
चलाते हुए जाता
और जाते के पाटों के बीच
सच होता एक मुहावरा
घुन
गेहूँ के साथ-साथ
पिसता जाता है।
कब तक सहेगा वह
सोचता है पुनः
धीरे-धीरे पिसता हुआ
मुहावरा होता हुआ घुन।
पिसता हुआ घुन
लेता है एक प्रण
अपने लिए आने वाली नस्लों के लिए
कि वह लड़ेगा -
खिलाफ दादी के जाँते के।
वह लड़ेगा
धीरे-धीरे मरता हुआ
अंतिम साँस तक लड़ेगा
अब नहीं सहेगा घुन।